विषय - सूची
7 Chanakya Niti in Hindi – Hello दोस्तों, आज मैं आपके लिए लेके आये हैं 7 ऐसे चाणक्य नीति जिन्हें पढ़ कर आप अपनी जिंदगी के बारे में 7 अलग अलग सिख को सीख पाएंगे। तो अगर आपको जानना है कि वो 7 बातें कौन कौन सी है जो आपको और कही नहीं मिलगा तो ये आर्टिकल आगे पढ़ते जाइये।
तो चलिए शुरू करते है –
7 Chanakya Niti in Hindi – त्याग, ज्ञान, बुढ़ापे, मुर्ख, और माता-पिता के बारे में जानिए
Chanakya Niti 1 – मूर्ख पुत्र किस काम का
मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः।
मृतः स चाल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत् ॥
आचार्य चाणक्य जी यहां इस श्लोक में मूर्ख पुत्र की निरर्थकता पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि मुर्ख पुत्र का चिरायु होने से मर जाना अच्छा है, क्योंकि ऐसे पुत्र के मरने पर एक ही बार दुःख होता है, जिन्दा रहने पर वह जीवन भर जलाता रहता है।
यहां आशय यह है कि मूर्ख पुत्र को लम्बी उम्र मिलने से उसका शीघ्र मर जाना अच्छा है। क्योंकि मूर्ख के मर जाने पर एक ही बार कुछ समय के लिए दुःख होता है, किन्तु जीवित रहने पर वह जीवन भर मां-बाप को दुःखी करता रहता है।
और संसार में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि मूर्ख पुत्रों ने विरासत में पाए विशाल साम्राज्य को धूल में मिला दिया। पिता की अतुल सम्पत्ति को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। मानव तो स्वभावत: अपनी सन्तान से प्रेम करता है परन्तु उसके साथ ही वह यदि वास्तविकता से भी आँखें मूंद ले तो फिर क्या हो सकता है? आचार्य चाणक्य यहां इसी प्रवृत्ति के प्रति सचेत कर रहे हैं।
Chanakya Niti 2 – ये बातें एक बार ही होती हैं
सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पण्डिताः।
सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत्सकृत् ॥
आचार्य चाणक्य यहां संयत और एक ही बार कार्य करने के सन्दर्भ में कहते हैं कि राजा लोग एक ही बार बोलते हैं; पण्डित भी एक ही बार बोलते हैं तथा कन्यादान भी एक ही बार होता है। ये तीनों कार्य एक-एक बार ही होते हैं।
- आशय यह है कि राजा का आदेश एक ही बार होता है।
- विद्वान् लोग भी एक बात को एक ही बार कहते हैं।
- कन्यादान भी जीवन में एक ही बार किया जाता है।
इस प्रकार चाहे राजा हो या विद्वान् या फिर कन्याओं के विवाह-सम्बन्ध आदि के लिए माता-पिता का वचन अटल होता है। तीनों- राजा, पण्डित तथा माता-पिता द्वारा बोले वचन लौटाए नहीं जाते, अपितु निभाए जाते हैं। उनके निभाने या पूरा करने में ही उनकी महानता होती है। अर्थात् जिसे जो अच्छा काम करना होता है, वह करता है, उसे बार-बार कहने की आवश्यकता नहीं होती। यही बड़े व्यक्तियों का आदर्श रूप है।
Chanakya Niti 3 – काम से पहले विचार कर लें
कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमोः।
कस्याहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः॥
आचार्य चाणक्य जी जीवन में व्यवहार्य वस्तु की पूरी पहचान कर ही उन्हें बरतने की बात प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि कैसा समय है? कौन मित्र है? कैसा स्थान है? आय-व्यय क्या है? मैं किसकी और मेरी क्या शक्ति है ? इसे बार-बार सोचना चाहिए।
अर्थात् व्यक्ति को किसी भी कार्य को शुरू करते समय इन बातों पर अच्छी तरह से विचार कर लेना चाहिए कि क्या यह समय इस काम को करने के लिए उचित रहेगा? मेरे सच्चे साथी कौन-कौन हैं, जो मेरी मदद करेंगे? क्या इस स्थान पर इस काम को करने से लाभ होगा? इस काम में कितना खर्च होगा और इससे कितनी आय होगी ? मैंने किसकी मदद की है? तथा मेरे पास कितनी शक्ति है?
इन प्रश्नों पर विचार करते हुए मनुष्य को अपना जीवन बिताना चाहिए तथा आत्मकल्याण के लिए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए। जो व्यक्ति इन बातों पर विचार नहीं करता, वह पत्थर के समान निर्जीव होता है और सदा लोगों के पांवों में पड़ा ठोकरें खाता रहता है। मनुष्य को समझदारी से काम लेकर जीवन बिताना चाहिए।
Chanakya Niti 4 – इनका त्याग देना ही अच्छा
त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥
आचार्य चाणक्य जी यहां त्यागने योग्य धर्म का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि धर्म में यदि दया न हो तो उसे त्याग देना चाहिए। विद्याहीन गुरु को, क्रोधी पत्नी को तथा स्नेहहीन बान्धवों को भी त्याग देना चाहिए।
अर्थात् जिस धर्म में दया न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए। जो गुरु विद्वान् न हो, उसे त्याग देना चाहिए। गुस्सैल पत्नी का भी त्याग कर देना चाहिए। जो भाई-बन्धु, सगे-संबंधी प्रेम न रखते हों, उनसे सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। अर्थात् दयाहीन धर्म को, विद्याहीन गुरु को, गुस्सैल पत्नी को और स्नेहहीन भाई-बन्धुओं को त्याग देना ही अच्छा है।
Chanakya Niti 5 – ज्ञान का अभ्यास भी करें
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्॥
आचार्य चाणक्य जी यहां ज्ञान को चिरस्थायी व उपयोगी बनाए रखने के लिए अभ्यास पर जोर देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़िया-से-बढ़िया भोजन बदहजमी में लाभ करने के स्थान पर हानि पहुंचाता है और विष का काम करता है, उसी प्रकार निरन्तर अभ्यास न रखने से शास्त्रज्ञान भी मनुष्य के लिए घातक विष के समान हो जाता है।
यों कहने को तो वह पण्डित होता है, परन्तु अभ्यास न होने के कारण वह शास्त्र का भली प्रकार विश्लेषण विवेचन नहीं कर पाता तथा उपहास और अपमान का पात्र बनता है। ऐसी स्थिति में सम्मानित व्यक्ति को अपना अपमान मृत्यु से भी अधिक दुःख देता है।
जो व्यक्ति निर्धन व दरिद्र है उसके लिए किसी भी प्रकार की सभाएं, उत्सव विष के समान हैं। इन गोष्ठियों, उल्लास के आयोजनों में तो केवल धनवान् व्यक्ति ही जा सकते हैं। यदि कोई दरिद्र भूल से अथवा मूर्खतावश इस प्रकार के आयोजनों में जाने की धृष्टता करता भी है तो उसे वहां से अपमानित होकर निकलता पड़ता है, अतः निर्धन व्यक्ति के लिए सभाओं, गोष्ठियों, खेलों व मेलों ठेलों में जाना प्रतिष्ठा के भाव से अपमानित करनेवाला ही सिद्ध होता है। उसे वहां नहीं जाना चाहिए।
Chanakya Niti 6 – बुढ़ापे के लक्षण
अध्वाजरं मनुष्याणां वाजिनां बन्धनं जरा।
अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणामातपं जरा॥
यहां इन पंक्तियों में आचार्य चाणक्य जी वृद्धावस्था पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि रास्ता मनुष्य का, बांधा जाना घोड़े का, मैथुन न करना स्त्री का तथा धूप में सूखना वस्त्र का बुढ़ापा है।
अर्थात् राह में चलते रहने से थककर मनुष्य अपने को बूढ़ा अनुभव करने लगता है। घोड़ा बंधा रहने पर बूढ़ा हो जाता है। सम्भोग के अभाव में स्त्री अपने को बुढ़िया अनुभव करने लगती है। धूप में सुखाए जाने पर कपड़े शीघ्र फट जाते हैं तथा उनका रंग फीका पड़ जाता है।
Chanakya Niti 7 – माता-पिता के भिन्न रूप
पिता –
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः॥
यहाँ इस श्लोक में आचार्य चाणक्य जी संस्कार की दृष्टि से पांच प्रकार के पिता को गिनाते हुए कहते हैं – जन्म देनेवाला, उपनयन संस्कार करनेवाला, विद्या देनेवाला, अन्नदाता तथा भय से रक्षा करनेवाला, ये पांच प्रकार के पिता होते हैं।
अर्थात् स्वयं अपना पिता जो जन्म देता है, उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार करनेवाला गुरु, अन्न-भोजन देनेवाला तथा किसी कठिन समय में प्राणों की रक्षा करनेवाला इन पांच व्यक्तियों को पिता माना गया है। किन्तु व्यवहार में पिता का अर्थ जन्म देनेवाला ही लिया जाता है।
माता –
राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातरः स्मृताः॥
यहाँ इस श्लोक में आचार्य चाणक्य माँ के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं कि राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माँ तथा अपनी माँ-ये पांच प्रकार का माँएं होती हैं।
अर्थात् अपने देश के राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी पत्नी की माँ, अर्थात् सास और जन्म देनेवाली अपनी माँ इन पांचों को माँ माना जाता है। वस्तुत: देखा जाए तो माता ममता और करुणा की प्रतिमूर्ति होती है। जहाँ से ममता और करुणा का प्रवाह पुत्र के लिए होता है, उसे माता मान लिया गया है। अतः इन पाँच स्थानों से भावनामयी, करुणामयी हृदय से भावमय प्रवाह प्रवाहित होता है। इसलिए इन पाँच को माता माना जाता है। इसीलिए इनका व्यक्ति के जीवन में माँ के समान ही महत्त्व है।
Conclusion
तो आज हमने सीखा कि –
- मुर्ख पुत्र किसी काम का नहीं है।
- कुछ चीजें एक ही बार होता है।
- कुछ भी करने से पहले उस पर जो कुछ भी questioning आप कर सकते हो करो और उसका जवाब ढूंढो।
- जीवन में कुछ चीजों का त्यागना ही हमारे लिए बेहतर है।
- ज्ञान की हमेशा रिहर्शल होती रहनी चाहिए, नहीं आपकी ज्ञान.. ज्ञान ही नहीं रहेगी।
- बुढ़ापे कब किसको आती है।
- और हमारे माता-पिता कौन है।
तो आपको आज का हमारा यह 7 Chanakya Niti in Hindi कैसा लगा ?
अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये।
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.
सम्बंधित लेख –
- Chanakya Niti in Hindi चाणक्य नीति – स्त्री पुरुष से कैसे आगे होती है ?
- Chanakya Niti in Hindi चाणक्य नीति – मृत्यु के कारणों से कैसे बचें ?
- Chanakya Niti in Hindi चाणक्य नीति – अच्छा मनुष्य कौन हैं ?
- Top 16 Chanakya Niti in Hindi
- 5 Unique Chanakya Niti in Hindi – क्या आपका भाग्य आपके साथ है ?
- Chanakya Niti in Hindi Explained – सीधा-साधा बने या टेढ़े-मेढ़े ?
- Chanakya Niti in Hindi – इन 6 बातों को जानना बहुत जरुरी है