Chanakya Niti in Hindi – चाणक्य जी ने कहा कि इन स्थानों पर कभी न रहें
चाणक्य नीति –
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः ।न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
जिस देश में सम्मान न हो, जहां कोई आजीविका न मिले, जहां अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहां विद्या-अध्ययन सम्भव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए।
अर्थात् जिस देश अथवा शहर में निम्नलिखित सुविधाएं न हों, उस स्थान को अपना निवास नहीं बनाना चाहिए –
- जहां किसी भी व्यक्ति का सम्मान न हो।
- जहां व्यक्ति को कोई काम न मिल सके।
- जहां अपना कोई सगा-सम्बन्धी या परिचित व्यक्ति न रहता हो।
- जहां विद्या प्राप्त करने के साधन न हों, अर्थात् जहां स्कूल-कॉलेज या पुस्तकालय आदि न हों।
- ऐसे स्थानों पर रहने से कोई लाभ नहीं होता।
अतः इन स्थानों को छोड़ देना ही उचित होता है।
अतः मुनष्य को चाहिए कि वह आजीविका के लिए उपयुक्त स्थान चुने। वहां का समाज ही उसका सही समाज होगा क्योंकि मनुष्य सांसारिक प्राणी है, वह केवल आजीविका के भरोसे जीवित नहीं रह सकता। जहां उसके मित्र-बन्धु हों वहां आजीविका भी हो तो यह उपयुक्त स्थान होगा। विचार-शक्ति को बनाये रखने के लिए, ज्ञान-प्राप्ति के साधन भी वहां सुलभ हों, इसके बिना भी मनुष्य का निर्वाह नहीं।
इसीलिए आचार्य चाणक्य यहां नीति वचन के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को ऐसे देश में निवास नहीं करना चाहिए जहां उसे न सम्मान प्राप्त हो, न आजीविका का साधन हो, न बंधु-बान्धव हों, न ही विद्या-प्राप्ति का कोई साधन हो बल्कि जहां ये संसाधन उपलब्ध हों वहां वास करना चाहिए।
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः ।पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥
जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान्, राजा और वैद्य न हो, जहां कोई नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।
अर्थात् इन स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए –
- जिस शहर में कोई भी धनवान व्यक्ति न हो।
- जिस देश में वेदों को जाननेवाले विद्वान् न हों।
- जिस देश में कोई राजा या सरकार न हो।
- जिस शहर या गांव में कोई वैद्य (डॉक्टर) न हो।
- जिस स्थान के पास कोई भी नदी न बहती हो।
क्योंकि आचार्य चाणक्य मानते हैं कि जीवन की समस्याओं में इन पांच वस्तुओं का अत्यधिक महत्त्व है। आपत्ति के समय धन की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति धनी व्यक्तियों से ही हो पाती है। कर्मकाण्ड के लिए पारंगत पुरोहितों की आवश्यकता होती है। राज्य-शासन के लिए राज-प्रमुख या राजा की आवश्यकता होती है। जल आपूर्ति के लिए नदी और रोग निरवारण के लिए अच्छे चिकित्सक की आवश्यकता होती है।
इसीलिए आचार्य चाणक्य पूर्वोक्त पांचों सुविधाएं जीवन के लिए अपेक्षित सुविधा के रूप में मानते हुए इनकी आवश्यकता पर बल देते हैं और इन सुविधाओं से सम्पन्न स्थान को ही रहने योग्य स्थान के रूप में समझते हैं।
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए।
इन पांच चीजों को विस्तार से बताते हुए वे कहते हैं कि जहां निम्नलिखित पांच चीजें न हों, उस स्थान से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए।
- जहां रोजी-रोटी का कोई साधन अथवा आजीविका या व्यापार की स्थिति न हो।
- जहां लोगों में लोकलाज अथवा किसी प्रकार का भय न हो।
- जिस स्थान पर परोपकारी लोग न हों और जिनमें त्याग की भावना न पाई जाती हो।
- जहां लोगों को समाज या कानून का कोई भय न हो।
- जहां के लोग दान देना जानते ही न हों।
ऐसे स्थान पर व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं होता और वहां रहना भी कठिन ही होता है। अत: व्यक्ति को अपने आवास के लिए सब प्रकार से साधन सम्पन्न और व्यावहारिक स्थान चुनना चाहिए ताकि वह एक स्वस्थ वातावरण में अपने परिवार के साथ सुरक्षित एवं सुखपूर्वक रह सके।
क्योंकि जहां के लोगों में ईश्वर, लोक व परलोक में आस्था होगी वहीं सामाजिक आदर का भाव होगा, अकरणीय कार्य करने में भय, संकोच व लज्जा का भाव रहेगा। लोगों में परस्पर त्यागभावना होगी और वे व्यक्ति स्वार्थ में लीन कानून तोड़ने में प्रवृत्त नहीं होंगे, बल्कि दूसरों के हितार्थ दानशील होंगे।
तो दोस्तों आपको आज का यह चाणक्य नीति कैसा लगा और इससे आपने क्या सीखा, मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये और इस चाणक्य नीति को अपने दोस्तों के साथ share जरूर करें।
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
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