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Chanakya Niti in Hindi – Hello दोस्तों, आज हम बात करने वाले हैं चाणक्य नीति के बारे में। चाणक्य नीति को आप जितनी बार पढ़ेंगे, जितने अच्छे से पढ़ेंगे, उतना ही ज्यादा आप अपने बारे में सीखेंगे।
Chanakya Niti in Hindi – ये 3 चाणक्य नीति जो व्यक्ति के जीवन के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट है
1. मन का भाव गुप्त ही रखें
मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत् ।
मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्य चाऽपि नियोजयेत् ।।
आचार्य चाणक्य का कथन है कि मन में सोचे हुए कार्य को मुंह बाहर नहीं से निकालना चाहिए। मन्त्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए। गुप्त रखकर ही उस काम को करना भी चाहिए। अभिप्राय यह है कि मन में जो भी काम करने का विचार हो, उसे मन में ही रखना चाहिए; किसी को बताना नहीं चाहिए।
मन्त्र के समान गोपनीय रखकर चुपचाप काम शुरू कर देना चाहिए। जब काम चल रहा हो, उस समय ही उसका ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए। बता देने पर यदि काम पूरा न हुआ तो हंसी होती है। कोई शत्रु काम बिगाड़ भी सकता है। काम पूरा होने पर फिर सबको मालूम हो ही जाता है क्योंकि मनोविज्ञान का नियम है कि आप जिस कार्य के लिए अधिक चिन्तन-मनन करेंगे और चुपचाप उसे कार्य रूप में परिणत करेंगे उसमें सिद्धि प्राप्त करने के अवसर निश्चित मिलेंगे इसीलिए आचार्य का कथन है कि मन में सोची हुई बात या कार्य-योजना कार्य रूप में लाने से पहले प्रकट नहीं करनी चाहिए। इसी में सज्जनों की भलाई है।
2. पराधीनता
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्ट च खलु यौवनम् ।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगे हनिवासनम् ॥
आचार्य का कहना है कि मूर्खता कष्ट है, यौवन भी कष्ट है, किन्तु दूसरों के घर में रहना कष्टों का भी कष्ट है।
वस्तुतः मूर्खता अपने-आपमें एक कष्ट है और जवानी भी व्यक्ति को दुःखी करती है। इच्छाएं पूरी न होने पर भी दु:ख तथा कोई भला-बुरा काम हो जाए, तो भी दुःख। इन दुःखों से भी बड़ा दुःख है-पराये घर में रहने का दु:ख। पर-घर में न तो व्यक्ति स्वाभिमान के साथ रह सकता है और न अपनी इच्छा से कोई काम ही कर सकता है। क्योंकि मूर्ख व्यक्ति को उचित-अनुचित का ज्ञान न होने के कारण हमेशा कष्ट उठाना पड़ता है। इसीलिए कहा गया है कि मूर्ख होना अपने-आप में एक बड़ा अभिशाप है।
कौन-सी बात उचित है और कौन-सी अनुचित है, यह जानना जीवन के लिए आवश्यक होता है। इसी भांति जवानी बुराइयों की जड़ है। कहा तो यहां तक गया है कि जवानी अन्धी और दीवानी होती है। जवानी में व्यक्ति काम के आवेग में विवेक खो बैठता है, उसे अपनी शक्ति पर गुमान हो जाता है। उसमें इतना अहं भर जाता है कि वह अपने सामने किसी दूसरे व्यक्ति को कुछ समझता ही नहीं। जवानी मनुष्य को विवेकहीन ही नहीं, निर्लज्ज भी बना देती है, जिसके कारण व्यक्ति को अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं। ऐसे में व्यक्ति को यदि दूसरे के घर में रहना पड़े तो उसे दूसरे की कृपा पर उसके घर की व्यवस्था का अनुसरण करते हुए रहना पड़ेगा। इस तरह वह अपनी स्वतंत्रता गंवा देगा। तभी तो कहा गया-‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’। इसीलिए इन पर विचार करना चाहिए।
3. साधु पुरुष
शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ॥
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि न प्रत्येक पर्वत पर मणि-माणिक्य ही प्राप्त होते हैं न प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता-मणि प्राप्त होती है। संसार में मनुष्यों की कमी न होने पर भी साधु पुरुष सब जगह नहीं मिलते। इसी प्रकार सभी वनों में चन्दन के वृक्ष उपलब्ध नहीं होते।
यहां अभिप्राय यह है कि अनेक पर्वतों पर मणि-माणिक्य मिलते हैं, परन्तु सभी पर्वतों पर नहीं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि कुछ हाथी ऐसे होते हैं जिनके मस्तक में मणि विद्यमान रहती है, परन्तु ऐसा सभी हाथियों में नहीं । इसी प्रकार इस पृथ्वी पर पर्वतों और जंगलों अथवा वनों की कमी नहीं, परन्तु सभी वनों में चन्दन नहीं मिलता। इसी प्रकार सभी जगह साधु व्यक्ति नहीं दिखाई देते।
साधु शब्द से आचार्य चाणक्य का अभिप्राय यहां सज्जन व्यक्ति से है। अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो दूसरों के बिगड़े हुए काम को बनाता हो, जो अपने मन को निवृत्ति की ओर ले जाता हो और नि:स्वार्थ भाव से समाज-कल्याण की इच्छा करता हो। साधु का अर्थ यहां केवल भगवे कपड़े पहननेवाले दिखावटी संन्यासी व्यक्ति से नहीं है। यहां इसका भाव आदर्श समाजसेवी व्यक्ति से है, परन्तु ऐसे आदर्श व्यक्ति सब जगह कहां मिलते हैं! वे तो दुर्लभ ही हैं। जहां भी मिलें उनका यथावत् आदर-सम्मान ही करना चाहिए।
आपको आज का ये चाणक्य नीति कैसा लगा और आप इस तीन नीति से कुछ सीख पाए या नहीं मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये। चाणक्य नीति को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।