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कृष्ण वाणी – Inspirational Thoughts in Hindi
कृष्ण वाणी 1 –
इस संसार को आप कैसे जानते हैं, कैसे समझ पाते हैं ! अब आपका उत्तर बहुत सरल सा होगा – इस संसार को स्वयं देख और ये बिलकुल उचित है।
अब देखिये हम आँखों से इस संसार को देखते हैं, इसे जानते है, उसके पश्चात इसको समझ पाते हैं, किन्तु हम इस बात पे ध्यान नहीं दे पाते की समस्त संसार को देखने वाली आंख, स्वयं कितनी छोटी होती है।
एक अकेली आंख हमे समस्त संसार दिखा सकती है, तो सोचिये आपके पास क्या क्या है…… दो आंखे है, दो कान, बोलने की क्षमता है – जिससे आप शब्दो का निर्माण कर सकते है। शब्द जिनसे आप ब्रह्म बना सकते है।
दो हाथ भी है – यदि ये चाहे तो पाताल तोड़ कर वहां से जल निकाल सकते है।
दो पांव है – यदि ये चाहे तो संसार में कितना भी बड़ा पर्वत क्यों न हो, उसे लाँघ सकते है।
एक ह्रदय हैं – जो प्रेम के बंधन में सबको बांध दे।
एक मन है – जो प्रकाश की गति से भी तेज चलता है।
एक मस्तिष्क है – जो कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न हो उसका हल एक सेकंड में निकाल लेता है।
और बताइये आपके पास क्या कुछ नहीं है !
समझने का प्रयास कीजिये की कितने धनवान हैं आप।
संसार में सबसे सुखी वो नहीं जिसके पास धन है, सुखी वो जो धन का उपयोग करें। उसी प्रकार आपके जीवन में आपका धन है आपकी ये शरीर की क्षमता।
अपनी शरीर की क्षमताओं का उपयोग कर सकारात्मक दृस्टि से सब कुछ देखो। इस संसार को समझो और सब कुछ समझो।
ये सुख चाह कर भी आपसे दूर नहीं जायेगा।
कृष्ण वाणी 2 –
कहते हैं जीवन में सम्बन्धो में गणित नहीं होता। और उचित ही तो कहते है, यदि इन सम्बन्धो में हानि, लाभ, गुणभाग ये सब आजाये तो सब कुछ केवल व्यापार ही तो बन जाता है।
ये सारा खेल बन है केवल अंको का। और ये जीवन निश्चित रूप से अंक गणित नहीं हैं।
इस जीवन में आनंद को बढ़ाना, पीड़ाओं को घटाना, अंक गणित का नहीं व्यव्हार और प्रेम का खेल है।
कभी किसी के सर पे हाथ रख के उसे सुभकामनाये ही देना कदासित वो उसे इतना आनंदित कर दें की वो इस संसार को जीते।
कभी आपके मुख से किसी के लिए कुछ कटाक्ष निकल जाये और कदासित वो उसे इतनी पीड़ा दे दें, की वो इस संसार में कुछ भी न कर पाए।
कभी भी जीवन में इन सम्बन्धो में गणित को न लाये, कभी नहीं….. ना हानि, ना लाभ, ना गुणभाग स्मरण रखियेगा।
इस संसार में ऐसा कोई समीकरण नहीं जिसका हल न हो, बस देरी हैं तो उसे ढूंढने की।
कृष्ण वाणी 3 –
स्वप्न – हम जीवन में स्वप्न देखते हैं, उन्हें पूर्ण करने का पूर्ण प्रयास करते है, किन्तु इस स्वप्नों को पूर्ण न कर पाने की स्थिति में हम टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं और फिर बोझ हम आने वाली पीढ़ी पर लगभग लाट देते है।
हम सोचते हैं की जो हम ना बन सकें, हमारी संतान अवश्य बने, जो हम कभी ना पा सके, हमारी संतान अवश्य पाएं।
ये विचार अनुचित प्रतीत नहीं होता, किन्तु ये भूल है और यही भूल हम कर बैठते हैं।
संतान प्रकृति और परमात्मा का आशीर्वाद है, उनके भीतर अपना एक उनका अस्तित्व छिपा है, तनिक गौर से देखिये तो सही।
आपने केवल उस संतान को जन्म दिया है, उसका जीवन आपका नहीं हैं, इसलिए अपनी संतान के साथ रहीं समय व्यतीत कीजिये और उन्हें प्रेम दीजिये, भरपूर प्रेरणा दीजिये। किन्तु प्रेरणा दीजिये सिर्फ उसका स्वयं का अस्तित्व बनाने की, उसके स्वयं के स्वप्न पुरे करने की, ना की अपनी अधूरी स्वप्न पूर्ण करने की। उनके अस्तित्व को निखार कर उठने दीजिये।
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