Short Panchatantra Ki Kahani – मूर्ख बंदर

Panchatantra Ki Kahani – मूर्ख बंद

सुदूर देश में एक राजा थे, वे अत्यंत प्रकृति प्रेमी थे। उनके एक अत्यंत सुंदर बगीचा था जिसमें असाधारण फूलों के पौधे थे।

उसी बगीचे में कुछ बंदर भी रहते थे। क्योंकि बंदरों फल वगेरह खाने को मिलते थे।

राजा ने पूरे देश के सबसे अच्छे माली को अपने बगीचे में नौकरी दिया।

राजा का माली पौधों की विशेष देखभाल किया करता था। हर दिन किस पौधे में कितना पानी देना है, कितना खाद देना है, पौधे पर किसी तरह की बीमारी तो नहीं लगी है, सब कुछ एक ही माली देखते थे।

एक बार माली को एक सप्ताह के लिए कहीं जाना था। उसे पौधों की चिंता थी, कि मेरे अलावा पौधे की देखभाल कौन करेगा, क्योंकि पौधे को हर दिन पानी देना होता है।

तभी उसे एक युक्ति सूझी। उसने बंदरों को पौधों में उसके जाने के बाद पानी डालने का निर्देश दिया। बंदरों ने भी उस माली का समर्थन किया, क्योंकि माली उसे हर दिन कुछ ना कुछ खाने को देते थे तो बंदरों ने मना नहीं किया।

माली के जाने के बाद बंदरों ने जब पानी डालने लगे तो बंदरों के सरदार ने उन्हें पानी बर्बाद करने से मना किया।

उस सरदार ने कहा, “पौधे को उखाड़ कर देखो, जितनी लंबी जड़ हो उतना ही पानी डालो”

तो सरदार की आदेशानुसार बंदर हर दिन पौधा उखाड़कर देखते और फिर मिट्टी में लगा देते।

तभी दूसरे दिन एक दरबारी ने यह देखा तो बंदर की सरदार को एसा करने से मना किया।

तो सरदार बंदर उल्टा उसी दरबारी पर क्रोध करने लगे। उसने कहा मैं सरदार हूँ, मुझे माली ने इस बगीचे का देखभाल करने को कहा, क्यों? क्योंकि मेरे अलावा किसी और के ऊपर उनका विश्वास नहीं था। अगर तुम्हें बाग़वानी के बारे में पता होता तो तुझे ही बगीचे का देखभाल करने को बोलता ना!

अब दरबारी को समझ में आ गया और बुद्धिमान दरबारी चुपचाप चलता बना।

सीख: इसलिए कहते हैं कि मूर्खो को सलाह कभी नहीं देनी चाहिए।

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