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3 Subconscious Mind Hacks in Hindi – पर्सनल डेवलपमेंट टिप्स इन हिंदी
एक इंसान जब कोई decision लेता है तो उसे लगता है वो decision सोच समझके और reasoning से ले रहा है, but mostly ये सच नहीं होती क्यूंकि decision लेते टाइम बहुत cognitive biases picture में आते है, जो एक इंसान के final decision बहुत ज्यादा impact करते है, जिसके बारे में हमे पता तक नहीं।
आज मैं आपलोगों को 3 cognitive biases के बारे में बताऊंगा, जिसकी मदद से आप लोगो के या अपने decision से आप actions को influence कर सकोगे, hack कर सकोगे।
तो आइए जानते है वो 3 Subconscious Mind Hacks क्या है –
No 1 – Anchoring
एक experiment में 2 अलग अलग groups के लोगो से एक question पूछा गया था की आपको क्या लगता है आज तक का दुनिया का सबसे लम्बा red wood पेड़ कितने feet का हुआ होगा ?
दोनों groups को ये same question पूछा गया था, but दोनों की question में थोड़ा सा difference add किया गया था।

अब दोनों group को समझाया भी गया था की ये estimate जो उन्हें बताये गए है वो बिलकुल सही नहीं है, but फिर भी दोनों groups के answers पे इन anchors का बहुत significant impact देखने मिला।
पहले groups ने mean guess किया था 844 feet का, जब की दूसरे groups का mean guess था बस 282 feet .
इतना ज्यादा difference था दोनों groups की guess में और difference का reason था वो दोनों अलग अलग anchor,
क्यूंकि उन बड़े और छोटे anchor ने लोगों की दिमाग को उस estimate से अटका दिया था, जिसकी वजह से वो लोग ज्यादा दूर तक नहीं सोच पाए उस estimate के बारे में।
जब हमे किसी चीज के बारे में कुछ पता नहीं होता तब उस टाइम हमे जो भी information available मिलती है उसी की basis पे हम decisions लेने लगते है, फिर चाहे वो information सही हो या गलत, इस बात फर्क नहीं परता,
और इसी fact का use करके आप जो mental hack कर सकते हो उसे बोलेंगे anchoring .
जो मार्किट में हमेशा से use होता है।
Example – दुकानवाले हमे पहले ही 500 के चीज के दाम को 2000 बोल देते है, जिसकी वजह से होता क्या है की हम 2000 रूपए से anchor हो जाते है,
और फिर जब हम कम करने का सोचते भी है तो हमारा brain हमे 2000 का पास ही रहने बोलते है, जिसे influence हो के हम कम से काम 1000 तक ही बोल पाते है, और उससे कम तो हमे बोलना अच्छा भी नहीं लगता।
इसके बाद जब वो चीज हमे 1000 की मिल जाती है तो फिर हमे लगता है की हमने कितना अच्छा कम कराया, जो की हम actual में वैसा की किया जैसा दुकान वाला चाहता था।
Advertising में भी इसका बहुत अलग अलग तरीकेसे use होता है।
No 2 – Loss Aversion
अगर मैं आपको 2000 रूपए दूंगा तो आपको उसकी ख़ुशी होगी but ये ख़ुशी इतना ज्यादा नहीं होगी जितना आपको बुरा लगेगा। अगर एक आपकी वही 2000 वाली note कही गुम हो जाये तो।
मतलब same amount अगर हमे मिलेगा तो हमे इतना अच्छा नहीं लगेगा, जितना हमे बुरा लगेगा अगर वही शामे amount का हमे lost होगा तो।
आपके साथ भी कभी ना कभी ऐसा जरूर हुआ होगा, studies बताती है हमारे किसी भी चीज का lost होना हमारे लिए psychologically
double painful होता है।
compare तो उसी same चीज की gain करने की ख़ुशी से और इसलिए ही हम चीजों को खोने से ज्यादा डरते है, risk लेने से डरते है, और ज्यादा कुछ gain करने का नहीं सोचते, बल्कि बस lost ना हो ये सोचते है, जो हमे बहुत बार आगे बढ़ने नहीं देता।

और ऐसा कोई बड़ी companies आपको lost बता के influence करती है उनका products खरीदने के लिए, और use करने करने के लिए।
अब ये तो advertisement की बात थी।
Main question ये आता है की इस principle का use कैसे कर सकते है?
और दोनों तरफ से सोचने की कोशिश करो, और दूसरों के लिए हम उस principle का use कुछ ऐसे कर सकते है।
Example – समझो अगर आपको किसी को books पढ़ने के लिए convince करना है तो उसे आप book पढ़ने से फायदे क्या क्या होंगे ये
ज्यादा मत बताओ बल्कि उन्हें ये बताओ की book नहीं पढ़ने से उनका कितना नुकसान हो सकता है।
No 3 – Framing
European Countries के ऊपर किये गए organ donation की study में पता चला था की कुछ countries जैसे की France, Poland, Portugal, Belgium etc. इन countries में organ donation के rate बहुत ज्यादा थे।
but उनकी जैसी similar countries जैसे की Denmark, Netherlands, UK, Germany इन countries में donation
rates बहुत ही कम थे, और ऐसा exactly क्यों था इस चीज के research चल रही थी, जिसे फिर at the end बहुत interesting बात पता चली।

उन्हें पता चला की ऐसा बिलकुल नहीं था की donation ज्यादा करने वाली countries के लोग comparison में दिल के में दिल के
ज्यादा अच्छे थे या उनका culture, religion factor था या ऐसा कुछ बल्कि surprisingly donation में इतनी huge difference का region था framing of a single question, बस और कुछ नहीं,
मतलब secret बस यही था की जो countries की donation rate बहुत कम था उनके लोग जब अपना DMV नाम का form भरते थे तो उसमें organ donation के ऊपर question कुछ ऐसे लिखा होता था –
camp.
जब की दूसरी तरफ जो countries में organ donations ज्यादा होती थी वो countries के DMV form में कुछ ऐसा लिखा होता था –
donation camp.
अब interestingly ऐसा option मिलने के बाद भी लोग tick mark नहीं करते थे, जिसके वजह से automatically वो लोगो का participation हो जाता था – ये था framing का कमाल।
आप चीजों को कैसे frame करते हो ये चीज लोगो के decision making पे बहुत impact कर सकता है,
मतलब अगर आप एक अच्छी चीज को बुरी तरीकेसे frame करके लोगो को बताऊंगा तो अच्छी चीज भी लोगो को बुरी लगेगी,
और unfortunately इसका उल्टा भी सच है, की अगर आप एक बुरी चीज को अच्छे से frame करके बताओगे तो वो बुरी चीज भी लोगो को अच्छी लगने लगेगी,
और इस principle का उसे मार्किट में बहुत गलत तरीकेसे हो रहा है,
अब इस चीज से related एक अच्छा Example है –
एक experiment किया था। उसमें क्या होता था की 2 magician एक नकली restaurant बनाते है, जिसमे वो लोग सादे नल के
पानी को अच्छे से frame करके अलग अलग attractive नाम देके French में Spanish में लोगो को बेचते है और वो भी ज्यादा ज्यादा पैसा लेके।
तो दोस्तों ये थे वो 3 प्रिंसिपल जो आपको लोगो को और खुद को subconscious level पर influence करने में help कर सकता है, और ये बातें मैं आपको Think Fast and Slow by Daniel Kahneman बुक से बताई है। अगर आपको psychology, biases और लोगो को कैसे influence करना है, उन सब चीजों के बारे में detail में सीखना है तो ये बुक आप
जरूर खरीदो।
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