Swami Vivekananda की गुस्सा

एक बार ऐसा हुआ स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका से भारत लौटे। उस समय बंगाल में आकाल पड़ा हुआ था। तो स्वामी विवेकानंद आते ही आकालग्रस्त इलाके में सेवा करने के लिए चले गए, ये बात है ढाका की।

तो वही ढाका के कुछ वेदांतिक पंडित उनका दर्शन करने के लिए आये हुए थे, क्यूंकि उन्हें भी पता लगा की स्वामी जी अमेरिका से लौटे हैं, और वो भारत का नाम रोशन करके लौटे हैं।

स्वामी जी ने भारत के कल्चर सभ्यता को दुनियाभर को अभगत करवाया है।

तो पंडितों ने सोचा ऐसे महान व्यक्ति से मिलना चाहिए। तो ऐसे में वो सभी पंडित ढाका में स्वामी विवेकानंद जी के दर्शन करने के लिए आगये।

और जब वे पंडित लोग स्वामी विवेकानंद जी से मिले, तो स्वामी विवेकानंद जी ने ना तो वेदांत की बात करि, ना उपनिषद, ना अध्यात्म और ना ही ब्रह्म चर्चा की कोई बात हुई।

स्वामी विवेकानंद जी तो आकाल के बारे में सोचने लगे और उसी के बारे में चर्चा कर रहे थे। और स्वामी विवेकानंद आकालग्रस्त इलाके में जो दुःख फैला हुआ था, उसे देख पा रहे थे।

वो ये सब कुछ नजारा देख कर काफ़ी दुखी हो गए थे, उनके आँसू रुक नहीं रहे थे। अब ऐसे में जो पंडित उनसे मिलने आये थे वे स्वामी की तरफ देखकर मुस्कुराने लगे,

और एक दूसरे पंडितो ने इशारों से कहने लगे – “अरे ये क्या स्वामी विवेकानंद जी तो बेकार में ही इस संसार के लिए दुखी हो रहे हैं, रो रहे हैं, अरे इतने बड़े ज्ञानी हो कर इन्हें ये तो पता होना चाहिए की ये शरीर तो मिट्टी है, नश्वर है। ये व्यक्ति किस तरह का ज्ञानी हुआ, ये तो रो रहा है।”

स्वामी जी के साथ मजूद देवकानंद ये सब कुछ देख कर बड़े ही आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने पूछा – “अरे भाई तुम इस तरह से व्यंग्य क्यों कर रहे हो, क्यों हँस रहे हो स्वामी विवेकानंद जी को देख कर, और ये किस तरह की बातें कर रहे हो !”

तो उन तथाकथित पंडितों ने कहाँ – “की अरे हम तो सोचते थे की स्वामी विवेकानंद जी ब्रह्म ज्ञानी हैं, एक महापुरुष है, जबकि शास्त्रों में साफ़ कहा गया है की हम ये शरीर तो है ही नहीं, बल्कि हम तो आत्मा हैं, और आत्मा तो कभी नहीं मरता, ये शरीर कपड़ों के भांति होता है, आज कोई कपडे पहन रखे, कल ये आत्मा कोई और कपडे पहनेगा। शास्त्रों में यह भी लिखा है की हम स्वयं ब्रह्म है। अब ब्रह्म की ना तो कोई मृत्यु होती है, और ना कभी जन्म होता है, और स्वामी जी आप ज्ञानी हो कर रो रहे हैं। हम तो ये सोच कर आये थे, की हम तो परमज्ञानी का दर्शन करने आये है, परन्तु आप तो अज्ञान में दुब रहे हैं।”

और वही विवेकानंद जी का डंडा पास में पड़ा था, उन्होंने वो डंडा उठा लिया, और झपटके दौरे उस आदमी पर जो पांडित्य झाड़ रहा था।

स्वामी जी ने अपना उसके सिर पर तान लिया और कहा – “अगर तू सचमुच् ज्ञानी है, अब बैठ और मुझे मारने दे, बस तू केवल इतना ध्यान रखना की तू ये शरीर नहीं है, तू तो आत्मा है और आत्मा के ना तो चोट लगती है और ना कभी नस्त होती है”

और विवेकानंद जी के बारे में तो आपको पता ही होगा, वो शरीर से काफी हस्तपुस्त और एक मजबूत आदमी थे। और साथ ही उनके हाथ में उनका बड़ा डंडा।

स्वामी जी को इस रूप में देख कर उस पंडित का तो गला ही चुख गया। वो तो स्वामी जी के सामने गिरगिराने लगा – “अरे महाराज रुको, आप ये क्या करते हो, ये कोई ज्ञान की बात तो नहीं है, हम लोग सत्संग करने आये थे, ब्रह्मचर्चा करने आये थे, आप जो कर रहे है ये उचित नहीं लगता !”

और बस फिर क्या था वो पंडित तुरंत वहां से भाग गया, और बाकि पंडित वहां जो खड़े हुए थे, ये सब देख रहे थे, उन्हें लगा की स्वामी जी को गुस्सा आ सुका है, अब ये आदमी तो जान से मार सकता है।

और बाकि बचे वो सभी पंडित उसके पीछे भाग गए।

और फिर बाद में विवेकानंद जी ने कहा की शास्त्रों को पुनः दोहराने से कोई ज्ञान नहीं होता। पांडित्य कोई ज्ञान नहीं हैं।

अब ऐसे में जो पंडित ज्ञान की बात कर रहा था वो सबकुछ तोता था, उसके दिमाग में केवल शास्त्रों के शब्दों को copy करके paste कर दिया गया था।

शास्त्रों का ज्ञान तो शास्त्रों का होता है। वह स्वयं का नहीं होता और जिसका स्वयं का ज्ञान नहीं होता वो ज्ञान नहीं है। अब चाहे वो किसी भी शास्त्रों में से लिया गया हो, उसको स्वयं अनुभव करना यही ज्ञान होता है।

और आज यही तो आधी से ज्यादा दुनिया कर रही है, किताबों में से नॉलेज प्राप्त कर ली और बस गाते-फिरते रहते हैं झंडा ऊँचा रहे हमारा, मेरा धर्म बड़ा है, तेरा धर्म छोटा है, मैं बड़ा, तू छोटा, मैं ज्ञानी हूँ, तू मुर्ख है वगैरह वगैरह…

अब एक आखिरी बात मेरा कहने का मतलब बिलकुल भी ये नहीं है मैं किसी भी शास्त्र या उपनिषद की बात नहीं कर रहा हूँ, बल्कि मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ आप शास्त्र पढ़ो, उपनिषद पढ़ो, लेकिन उसे अपने स्वभाव में उतारके देखो।

शब्दों को पढ़ो तो सही लेकिन उनकी गहराई में डुबकी लगाओ, एक एक शब्द में बहुत गहराई होती है, जिसमें हर इंसान नहीं उतर पाता।

जब किताबों में मिला ज्ञानं आपके blood, आपके दिमाग, आपकी आत्मा, आपके भीतर बहुत गहरे में चला जाये, आपका रोम-रोम उसे अनुभव करने लगे तब ये ज्ञान आपका ज्ञान है, यह उधार ज्ञान नहीं है।

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