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Tenali Raman Story in Hindi – Hello दोस्तों, आज फिर से मैंने आपके लिए तेनालीराम जी के एक नए मोरल स्टोरी संग्रह करके लेके आया हूँ, उम्मीद करता हूँ आपको अच्छा लगेगा और कोई नया सीख मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं –
Tenali Raman Story in Hindi – परियों से भेंट
एक बार विजयनगर के राज दरबार में एक यात्री राजा कॄष्णदेव राय से मिलने के लिए आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने यात्री को उनसे मिलने की आज्ञा दे दी।
यात्री बहुत ही लम्बा व पतला था। उसका सारा शरीर नीला था। वह राजा के सामने सीधा खडा होकर बोला, “महाराज, मैं नीलदेश का नीलकेतु हूँ और इस समय मैं विश्व-भ्रमण पर निकला हुआ हूँ। अनेक देशों की यात्रा करते हुए मैं यहॉ पहुँचा हूँ। घूमते हुए मैंने अनेक देशों में विजय नगर और आपके न्यायपूर्ण शासन व उदार स्वाभाव के बारे मैं बहुत कुछ सुना। अतः मेरे मन मैं विजय नगर और आपको देखने व जानने की उत्सुकता और भी बढ गई। इसीलिए मैं आपसे मिलने व विजय नगर साम्राज्य को देखने की अभिलाषा से यहॉ आया हूँ।”
राजा ने यात्री का स्वागत किया और उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा द्वारा मिले आदर व सत्कार से गदगद होकर यात्री बोला, “महाराज, मैं उस स्थान के विषय में जानता हूँ, जहॉ परियॉ रहती हैं। मैं आपके सामने अपनी जादुई शक्ति से उन्हें बुला सकता हूँ।”
यह सुनकर राजा बहुत उत्सुक हो गए और बोले, “इसके लिए मुझे क्या करना होगा, नीलकेतु?”
“महाराज, इसके लिए आपको नगर के बाहर स्थित तालाब के किनारे मध्यरात्री को अकेले आना होगा। तब मैं वहॉ परियों को नॄत्य के लिए बुला सकता हूँ।” नीलकेतु ने उत्तर दिया।
राजा उसकी बात मान गए। उसी रात मध्यरात्रि में राजा अपने घोडे पर सवार होकर तालाब की ओर चल दिए। वहॉ पुराने किले से घिरा हुआ एक बहुत बडा तालाब था ।
राजा के वहॉ पहुँचने पर नीलकेतु पुराने किले से बाहर निकला और बोला, “स्वागत है महाराज, आपका स्वागत है। मैंने सारी व्यवस्था कर दी है और पहले से ही परियों को यहॉ बुला लिया है। वे सभी किले के अन्दर हैं और शीघ्र ही आपके लिए नॄत्य करेंगी।”
यह सुनकर राजा चकित हो गए। उन्होंने कहा था कि मेरी उपस्थिति में परियों को बुलाओगे?”
“यदि महाराज की यही इच्छा है तो मैं फिर से कुछ परियों को बुला दूँगा। अब अन्दर चला जाए।” नीलकेतु बोला। राजा, नीलकेतु के साथ जाने के लिए घोडे से उतर गए। जैसे ही वह आगे बढे, उन्होने ताली की आवाज सुनी। शीघ्र ही उन्हे विजयनगर की सेना ने नीलकेतु को भी पकडकर बेडियों से बॉध दिया।
“यह सब क्या है और यह हो क्या रहा है?” राजा ने आश्चर्य से पूछा।
तभी तेनालीराम पेड के पीछे से निकला और बोला, “महाराज, मैं आपको बताता हूँ कि यह सब क्या हो रहा है? यह नीलकेतु हमारे पडोसी देश् का रक्षा मंत्री हैं। किले के अन्दर कोई परियॉ नहीं हैं। वास्तव में, इसके देश के सिपाही ही वहॉ परियों के रूप में छिपे हुए हैं अपने नकली परों में उन्होंने अपने हथियार छिपाए हुए हैं। यह सब आपको घेरकर मारने की योजना है।”
“तेनाली राम, एक बार फिर मेरे प्राणो की रक्षा के लिए तुम्हें धन्यवाद। परन्तु, यह बताओ कि तुम्हें यह सब पता कैसे चला?” राजा बोले।
तेनाली राम ने उत्तर दिया, “महाराज जब यह नीलकेतु दरबार में आया था, तो इसने अपने शरीर को नीले रंग से रंगा हुआ था। परन्तु यह जानकर कि विजयनगर का दरबार बुद्धिमान दरबारियों से भरा हुआ है, यह घबरा गया तथा पसीने-पसीने हो गया। पसीने के कारण इसके शरीर के कई अंगो पर से नीला रंग हट गया तथा इसके शरीर का वास्तविक रंग दिखाई देने लगा। मैंने अपने सेवकों को इसका पीचा करने के लिए कहा। उन्होंने पाया कि ये सब यहॉ आपको मारने की योजना बना रहे हैं।”
राजा तेनाली राम की सतर्कता से प्रभावित हुए और उसे पुनः धन्यवाद दिया।
Conclusion
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