Yoga in Hindi – Yoga क्या है, प्रकार, फायदा, नियम, आसन और करने का सही तरीका

Hey दोस्तों, आज मैं इस पोस्ट में आप लोगो के लिए एक ऐसे विषय को लेकर आयी हूँ, जिसकी आज के समय में अत्यधिक जरुरत है। उस विषय का नाम है Yoga. वैसे लोग सोचते तो है कि योग तो उनको समझमें आते हैं, लेकिन सच में उनको Yoga के बारे सही नॉलेज है? योग वो नहीं है जो आप सोचते हो, योग वो है जो आप सोच भी नहीं सकते।

  • क्या आपको पता है Yoga कितने प्रकार के होते है?
  • सही तरीकेसे योग कैसे करते हैं?
  • योग करने के क्या-क्या फायदे हैं?
  • क्या आपको पता है योग में आसन, नियम, ध्यान, समाधि इत्यादि क्या है?
  • क्या आपको पता प्रणायाम योग के अंदर आते हैं?
  • क्या आपको पता है प्राणायाम का मतलब क्या है और कैसे प्राणायाम करते हैं?
  • क्या आपको पता कौन-कौनसी बीमारी कौनसी योगासन करने से ठीक हो जाता है?

अगर आपको इन सभी सवालों का सही जवाब चाहिए तो इस पोस्ट को पढ़ते रहिये, क्यूंकि मैं इस पोस्ट में आपको योग से सभी जानकारी दे रहा हूँ।

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Yoga in Hindi – Yoga क्या है, प्रकार, फायदा, नियम, आसन और करने का सही तरीका

दोस्तों आज के समय में आप एक चीज का नाम अवश्य सुनते होंगे वह है – योग। और आपने अभी तक कोई भी धार्मिक पुस्तक पढ़ी होगी, जैसे कि गीता, महाभारत, रामायण, उपनिषद, पुराण। तो उसमें कहीं ना कहीं आपने योग शब्द का उल्लेख अवश्य सुना होगा।

दरअसल योग शब्द हमारे ग्रंथों में एक या दो बार नहीं मिलता। बल्कि योग शब्द का प्रयोग हमारे ग्रंथों में बहुत बार किया जाता है। आज हम बात करेंगे, इसी योग के बारे में। आप लोगों को ऐसा लग रहा होगा – कि योग के बारे में बात करने का क्या मतलब है? उसके बारे में तो सभी लोग जानते हैं।

तो दोस्तों मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि, इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आप लोगों को योग का जो कोर है या जो बेसिक्स है वह आपको जरूर समझ में आ जाएगा।

योग हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है ? और जो लोग समझते हैं कि, यह योग सही मायने में है क्या ? आपको इस आर्टिकल में इसका उत्तर जरूर मिल जायेगा और यकीन मानो तो एक बार आप यह समझ जाएंगे ना, तो आपकी लाइफ स्टाइल बदल जाएगी।

आपको किसी भी सब्जेक्ट को देखने का नजरिया बदल जाएगा। आपको अपने हर कार्य में बहुत मजा आने लगेगा। तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढियेगा। तो चलिए जानते हैं कि योग क्या है?-

Yoga क्या है?

योग शब्द का सामान्य अर्थ होता है- जोड़ना। जोड़ सभी को पता है। एक संख्या या दो संख्या को जोड़ना। ऐड करना इसी को तो कहते हैं जोड़। अब कैसे जोड़ना ?

यहां पर योग में जोड़ने की बात कही गई है ,तो यह जोड़ना क्या है ? हम अपने शरीर , मन, बुद्धि ,आत्मा, विवेक किसी के भी साथ कुछ भी जोड़ते हैं। उसे भी योग कहते हैं। कुछ भी जोड़ना जैसे ,अगर हम अपने शरीर के साथ कुछ भी जोड़ देते हैं उसे ही तो कहते हैं योग

यदि हम एक गिलास पानी भी पीते हैं ,तो वह भी हमारे शरीर के साथ जुड़ जाता है। अतः वह भी योग है। हम यदि पढ़ रहे हैं, और पढ़कर कुछ बनना चाहते हैं, तो वह भी योग है। हम अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं, वह भी योग है।

अब आप लोग यह सोच रहे होंगे कि, यदि सब कुछ जो भी हम करते हैं, वह योग है। तो हम लोग क्यों करें ? क्योंकि हम तो हर रोज कुछ ना कुछ करते रहते हैं। अर्थात योग तो हम रोज ही करते हैं। तो हम स्पेशल योग क्यों करें ? इस पर हम विस्तार से बात करते हैं।

उससे पहले हम जान लेते हैं कि, हमारे ग्रंथों और पुराणों में हमारे ऋषि मुनि और बाकी लोगों ने क्या कहा है -योग को लेकर ?

Yoga Kya Hai – योग की परिभाषाएं

भारतीय दर्शन में योग शब्द अति महत्वपूर्ण शब्द है जिसे अलग अलग तरीके से परिभाषित किआ गया है।

योग सूत्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि के अनुसार –

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः

अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। चित्त का तात्पर्य अंतःकरण से है।

महर्षि याज्ञवल्कय के अनुसार –

संयोग योग इ संयोग योग इत्युक्तो जीवात्मपरमात्मनो।।

अर्थात जीवात्मा और परमात्मा के संयोग की अवस्था ही योग है।

महर्षि वेदव्यास जी के अनुसार योग का अर्थ है –

समाधि अर्थात हम योग में संपूर्ण समाधि की अवस्था में पहुंच जाएं उसे ही योग माना जाता है यानी हमारे शरीर के साथ अगर समाधि दी जाती है तो उसे योग माना जाता है

भगवान श्री कृष्ण के अनुसार-

अर्थात गीता के अनुसार जो हमारा कार्य है अगर हम उस में लिप्त हो जाएं और उस कार्य से हमें दिव्य प्रेरणा मिलने लगे और उस दिव्य प्रेरणा से हमें वह कार्य करने में और ज्यादा मजा आने लगे या वह कार्य करने के लिए हमें प्रेरित करें उसे ही योग कहते हैं।

सब मिलाकर हम जो कर्म कर रहे हैं उस कारण में अगर हमें मजा आने लगे, आनंद आने लगे , स्वयं हमसे जुड़ने लगे तो वही योग है। वैसे गीता में ध्यान योग, सांख्ययोग और कर्मयोग इन तीनों योगों पर ज्यादा जोर दिया गया है।

महर्षि पतंजलि के अनुसार ,”जो हमारा मन है, उस मन में अगर कोई वृत्तियां उत्पन्न होती हैं, उसे अगर हम रोक पाए, तो वही योग है।” वृतियां अर्थात हम अपने मन को पूरी तरीके से काबू कर ले। जो चाहे वही सोचे, और अपनी सोच पर नियंत्रण हासिल कर ले, वही योग है।

तो दोस्तों यह हमारे कुछ ऋषि मुनि और हमारे ग्रंथों के अनुसार बताई गई बातें हैं। परंतु आप अगर ध्यान देंगे, तो इन सब में एक बात पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है वह है जोड़ना। शरीर को समाधि से जोड़ना। शरीर को मन से जोड़ना या मन को शरीर से जोड़ना।

इन सब का मेन मोटिव जो है वह जोड़ना ही है। योग क्या है? तो आपको यह सब तो समझ में आ गया होगा कि योग का अर्थ जोड़ने से है। अर्थात किसी भी चीज को यदि हम अपने मन से जोड़ते हैं। अपनी आत्मा से जोड़ते हैं, उसे योग कहते हैं।

अभी आप लोगों के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि ध्यान योग और प्राणायाम क्या है ?क्यों योग के नाम पर हमें पढ़ाया जाता है ? तो देखिए दोस्तों यहां योग प्राणायाम का माध्यम है। क्योंकि योग हमें किसी भी चीज से जोड़ सकता है।

दरअसल ध्यान योग और प्राणायाम गठित योग नहीं है। यह योग के साधन है। यानी कि किसी भी चीज से जोड़ना उनके द्वारा संभव हो सकता है।

हम योग कर रहे हैं ,यह कैसे पता चलेगा। इसे पता करने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि, हमारा मन आनंदित होने लग जाएगा जब हमारा शरीर आनंदित होगा। तो समझ लीजिए कि हम योग योग कर रहे हैं।

जिस कार्य में हमें आनंद मिलने लगे, या जो भी चीज हम कर रहे हैं, उसमें हमने आनंद प्राप्त कर लिया, वही योग है। यह तो आप समझ गए होंगे कि अब योग क्या है।

योग का इतिहास –

धरती पर इंसान ने बहुत चमत्कार देखे हैं। मानव की पहली नजर हर रहस्य का पर्दाफाश किए जा रही है। मनुष्य संसार को देखता ही जा रहा है। आज से हजारों वर्ष पहले उपनिषदों में ऋषियों ने कहा था कि,” हमारी इंद्रियों को बाहर की तरफ बनाया गया है इसलिए हम हमेशा बाहर बातों से प्रभावित रहते हैं।

हमारा मन और बुद्धि लगातार बाहर के ही संसार में डूबे रहते हैं। संसार के परिवर्तन हमें सुख और दुख के बीच तोलाएमान रखते हैं। ज्ञान की तमाम शक्तियों के बावजूद हम अपनी प्रसन्नता को स्थाई नहीं रख पाए। लेकिन हमारे पूर्वजों ने एक ऐसी प्रक्रिया का आविष्कार किया था, जिससे मन हमेशा शांत और प्रसन्न बना रह सकता था। यह प्रक्रिया पतंजलि के 195 योग सूत्रों में दर्ज है। योग सूत्र

ऐसा माना जाता है कि सभ्यता के विकास के साथ ही योग की भी शुरुआत हो गई थी। योग का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। जब अलग-अलग धर्मों का उदय भी नहीं हुआ था। तब से योग की शुरुआत हो चुकी थी।

मान्यता है कि, हजारों वर्ष पूर्व हिमालय में कांति सरोवर नाम की एक झील थी, जिसके तट पर आदियोगी अर्थात शिव ने अपने दिव्य ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्तऋषि यों को प्रदान किया। जिसे इन सप्तऋषि यों ने विश्व के भिन्न-भिन्न भागों तक पहुंचाया। यह एक मनगढ़ंत कहानी नहीं है ,अपितु इसके कई साक्ष्य अभी भी विश्व के कोने-कोने में मौजूद हैं।

लगभग हमारे समस्त वेद उपनिषद एवं ग्रंथों और पुराणों में योग का वर्णन मिलता है। पूर्व वैदिक काल में योग को दैनिक दिनचर्या के रूप में किया जाता था। महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से उस समय की मौजूद योग प्रथाओं और इसके ज्ञान को कूटबद्ध किया।

पतंजलि के बाद भी अनेकों ऋषि-मुनियों ने योग को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। पूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) से पतंजलि काल तक योग के साक्ष्य देखे गए हैं।

योग की श्रेष्ठ अवधि 500 ईसा पूर्व से 800 ईसवी सन के बीच की अवधि को माना गया है। जिसे योग के इतिहास एवं विकास में सबसे उर्वर एवं महत्वपूर्ण अवधि के रूप में भी माना जाता है। इस सब का वर्णन भगवत गीता में मिलता है।

800 ईस्वी से 1700 ईस्वी के बीच की अवधि को उत्कृष्ट अवधि के बाद की अवधि के रूप में माना जाता है। जिसमें महान आचार्य आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और माधवाचार्य के उपदेश इस अवधि के दौरान प्रमुख थे।

1700से1900 ईसवी के बीच की अवधि को आधुनिक काल के रूप में माना जाता है। जिसमें महान योगाचार्य रमण महर्षि रामाकृष्ण परमहंस, योगानंद, विवेकानंद आदि ने राज्यों के विकास में योगदान किया है। यह ऐसी अवधि है, जिसमें वेदांत भक्ति योग, नाथ योग, या हठयोग फला – फूला।

अब इस युग में स्वास्थ्य की देखभाल और संवर्धन के लिए योग की आवश्यकता है। आज कुछ महान संतों की वजह से पूरी दुनिया में योग फैल गया है। जो किसी खास धर्म, आस्था, पद्धति या समुदाय के मुताबिक नहीं चलता है।

इसे सदैव अंतर्मन की सेहत के लिए एक कला के रूप में देखा गया है। जो कोई भी तल्लीनता के साथ योग करता है, वह इसके लाभ प्राप्त कर सकता है। चाहे उसका धर्म, जाति या संस्कृति कोई भी हो।

योग का उद्देश्य

योग का मुख्य उद्देश्य हमारे जीवन का समग्र विकास करना है। अर्थात हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास। चाहे वह शारीरिक दृष्टि से हो या मानसिक दृष्टि से हो। योग कहलाता है।

योग का प्रमुख उद्देश्य जीवन में सकारात्मकता को लाना है। क्योंकि आधुनिक समय में नकारात्मकता की छवि अत्यधिक विकसित रूप से छा गई है। इसको कम करके इस छवि को पूर्णतया बदलने के लिए हमें योग का सहारा लेना पड़ता है।

योग का उद्देश्य हमारी जिंदगी में मूलभूत परिवर्तन है। योग का मुख्य उद्देश्य है, माइंड को कंट्रोल करना। इंद्रियों का राजा माइंड होता है। वह व्यक्ति जो अपनी इंद्रियों, अपने दिमाग, अपने शौक, अपने विचार और कारणों पर नियंत्रण कर पाता है। वही असली राजा कहलाता है। यह राजयोग कहलाता है।

जो व्यक्ति अपने दिमाग पर नियंत्रण करता है, वह खुद पर नियंत्रण कर पाता है। और माइंड कंट्रोल करने का रास्ता योग से ही मिल सकता है।

योग के मुख्य उद्देश्य हैं-

  • शारीरिक उद्देश्य
  • मानसिक उद्देश्य
  • सामाजिक उद्देश्य
  • संवेगात्मक उद्देश्य
  • चारित्रिक उद्देश्य
  • आध्यात्मिक उद्देश्य
  • अनुशासनात्मक उद्देश्य
  • राष्ट्रीय उद्देश्य
  • रहन-सहन व्यवस्थित रखना
  • शारीरिक और मानसिक प्रबलता
  • मानसिक स्थिरता
  • भक्ति की भावना आदि सभी योग के उद्देश्यों में आते हैं

योग के प्रकार – Types of Yoga in Hindi

योग के मुख्य रूप से 7 प्रकार होते हैं , जो निम्न हैं –

  1. राज योग
  2. कर्म योग
  3. भक्ति योग
  4. ज्ञान योग
  5. हठयोग
  6. तंत्र योग
  7. लय योग

1 .राज योग

इस योग को राजसी योग भी कहते हैं। इस योग का महत्वपूर्ण अंग ध्यान है। राज योग के महर्षि पतंजलि ने 8 अंग बताएं हैं जो निम्न हैं –

  1. यम,
  2. नियम,
  3. आसन,
  4. प्राणायाम,
  5. प्रत्याहार,
  6. धारणा,
  7. ध्यान,
  8. समाधि।

इन्हें अष्टांग योग भी कहा जाता है।

अष्टांग नियम

अष्टांग योग के प्रणेता महर्षि पतंजलि थे । अष्टांग योग का अर्थ आठ चरण नहीं है, बल्कि इसका अर्थ 8 आयामों से है। जिसमें 8 आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। यह आठ अंग निम्न है –

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।

जिनमें से प्रथम पांच अंग अर्थात यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार को ‘बहिरंग‘ कहा गया है, और शेष तीन अंग धारणा, ध्यान, समाधि को ‘अंतरंग‘ नाम दिया गया है। जब साधक बहिरंग साधना कर लेता है, उसके पश्चात ही वह अंतरंग साधना कर पाता है। आइए अब इन 8 अंगों के बारे में विस्तार से जानते हैं-

यम

अर्थात संयम, संयम पांच प्रकार का माना गया है।

  • अहिंसा,
  • अस्तेय (चोरी न करना),
  • सत्य,
  • ब्रह्मचर्य,
  • अपरिग्रह

अहिंसा – अहिंसा से प्रतिष्ठित हो जाने पर उस योगी के पास से वैर भाव छूट जाता है, अर्थात वह किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता है। अहिंसा शब्द का अर्थ यही है कि, वह व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को हानि नहीं पहुंचाता है। या हिंसा नहीं करता है। अर्थात वह किसी भी जीव मात्र की हत्या नहीं कर सकता है।

सत्य – सत्य से प्रतिष्ठित हो जाने पर उस साधक में क्रियाओं और उनके फलों की अचरजता आ जाती है ,अर्थात वह जब सत्य बोलने लगता है तो उसका फल साधक को अच्छा ही प्राप्त होता है। हमारे धर्म ग्रंथों में कहा भी गया है कि हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए। सत्य बोलने वाले व्यक्ति को किसी भी बात का डर नहीं लगता है, और वह निडर होकर दुनिया की हर मुश्किल का हल खोज लेता है।

अस्तेय – अस्तेय के आचरण में प्रतिष्ठित हो जाने पर समस्त रत्नों की उपस्थिति हो जाती है, अर्थात उस व्यक्ति के मन में जब चोरी का भाव जागृत ही नहीं होगा अर्थात उसके पास हर रत्न की उपस्थिति है। वह जितना है उतने में ही संतुष्ट है। अर्थात उसे मन से सब रत्न प्राप्त हो गए हैं। फिर वह कभी चोरी नहीं करता है। या यूं कहें कि चोरी का भाव भी उसके दिमाग में नहीं आता है।

अपरिग्रह -अपरिग्रह के स्थिर हो जाने पर जन्मों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, या यह कहें कि व्यक्ति को भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान हो जाता है। अपरिग्रह का अर्थ है -आवश्यकता से अधिक संचय न करना। जितनी आवश्यकता है, उतना ही लेना।

नियम

शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणीधान, नियम कहे जाते हैं।

शौच -शरीर एवं मन की शुद्धि को ही शौच कहा जाता है।

संतोष –कोई भी व्यक्ति जब काम में जितना है, उतने में प्रसन्न रहता है, तो उसे संतुष्ट कहते हैं।

तप -जब हम खुद को अनुशासित रखते हैं, तब वह तप कहा जाता है।

स्वाध्याय -आत्म चिंतन करना स्वाध्याय कहा जाता है।

ईश्वर प्राणिधान -ईश्वर के प्रति श्रद्धा – भाव या पूर्ण समर्पण प्राणिधान कहलाता है।

आसन

आसनों के द्वारा हम अपने शरीर को ढालते हैं। स्टेबल तथा एक कंफर्टेबल सीटिंग पोजिशन को ही आसन कहा जाता है। आसन एक योग है। जो कि हठयोग का एक प्रमुख विषय है।

योग के प्रमुख आसन कौन-कौन हैं ?

आसान कई प्रकार के होते हैं। हमारे शरीर की स्थिति के आधार पर आसान को निम्न श्रेणी में बांटा गया है –

  1. बैठकर किये जाने वाले आसन।
  2. पीठ के बल लेट कर किये जाने वाले आसन।
  3. पेट के बल लेटकर किये जाने वाले आसन।
  4. खड़े होकर किये जाने वाले आसन।
  5. अन्य आसन।

बैठकर किये जाने वाले Yoga आसन

पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तानासन, वायु मुद्रा, उष्ट्रासन, गोमुखासन, निस्पंद भवासन , कुक्कुट पवनमुक्तासन, विस्तृत पादहस्तासन या भूनमन आसन, पादहस्तासन, भद्रासन, पक्षी क्रिया, गोरक्षासन, मेरुदंड आसन, जानू शीर्षासन, शशांक आसन, सुप्त वज्रासन, त्रिपाद आसन, पाद चलन क्रिया, पादोत्तनासन या उत्तानपादासन, चक्की चलन क्रिया, पूर्वोत्तानासन, नाभिदर्षनासन, सुखासन, योग मुद्रासन, पर्वतासन, तुलासन या डोलासन या झूलासन पदम्को णासन,पद्म टकरासन, कुक्कुटासन, गभसीन, बद्ध पद्मासन, बकासन, पादांगुष्ठासन,आकर्ण धनुरासन, कुर्मासन, सिहासन, मयूरासन मयूरी आसन।

पेट के बल लेटकर किए जाने वाले Yoga आसन

शिथिलासन, नाभिआसन, भुजंगासन, निरलंबासन् या मकरासन, शलभासन, धनुरासन, आकर्ण धनुरास, वितरित मेरुदंडासन, वितरित पवनमुक्तासन, विपरीत नौकासन।

पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले Yoga आसन

शवासन, सुप्त पवनमुक्तासन, तानासन, अनंतासन या कृष्णासन, बालासन( शिशु आसन) ,उत्तानपादासन या पदोक्तानासन, पादचालनासन, मत्स्येंद्रासन, सुप्त मेरुदंड आसन, सेतुबंध आसन, सर्वांगासन, पद्म सर्वांगासन या उर्ध्व पद्मासन, हलासन, कर्णपीड़ासन, चक्रासन, सुप्त चक्की चालन क्रिया।

खड़े होकर किए जाने वाले Yoga आसन

वायुयान आसन, हस्त पादांगुष्ठासन, कोणासन, त्रिकोणासन, ध्रुवासन, वतयनासन, गरुड़ासन, शीर्षासन, ताड़ासन, अर्ध चंद्रमासन, अर्ध चक्रासन, दोभुज कटिचक्रासन, चक्रासन, पादहस्तासन।

अन्य Yoga आसन

शीर्षासन, मयूरासन, सूर्य नमस्कार आसन आदि।

योग के ग्रंथों में संसार के समस्त जीव-जंतुओं के बराबर ही आसनों की संख्या को बताया गया है। इस प्रकार 84000 आसनों में से मुख्य 84 आसन ही माने गए हैं। योग के आसनों को निम्न 6 भागों में बांटा गया है-

पशु आसन या जीवासन

वृश्चिक आसन, भुजंगासन, मयूरासन, सिंहासन, शलभासन, मत्स्यासन, बकासन, कुक्कुटासन, मकरासन, हंसासन, उष्ट्रासन, क्रौंच आसन, शशांक आसन, तितली आसन, गोमुखासन, गरुड़ासन, कागासन, चातक आसन, उल्लूकासन, श्वानासन, अधोमुख श्वानासन, पार्श्व बकासन, भद्रासन या गोरक्षासन, कागासन, व्याघ्रासन, एकपाद राजकपोतनासन।

वस्तुआसन

हलासन, धनुरासन, आकर्ण अर्द्ध धनुरासन, चक्रासन या उर्ध्व धनुरासन, वज्रासन, सुप्त वज्रासन, नौकासन, विपरीत नौकासन, दण्डासन,तोलंगासन, तोलासन, शिलासन।

प्राकृतिक आसन

तीसरी तरह के आसन वनस्पति वृक्ष और प्रकृति के अन्य तथ्यों पर आधारित हैं। जैसे- वृक्षआसन, पद्मासन, लतासन, पद्म पर्वतासन, मंडूकासन, पर्वतासन, अधोमुख वृक्षासन, अनंत आसन, चंद्रासन, अर्ध चंद्रासन, तालाब आसन आदि।

अंग व अंग मुद्रा आसन

शीर्षासन, सर्वांगासन, पादहस्तासन या उत्तानासन, पादहस्तासन, सर्वांगासन, मेरुदंड आसन, अंगूठासन या अंगुष्ठासन, उत्तिष्ठता पादहस्तासन, चक्रासन, विपरीत दंडासन, जानुशीरासन, कर्णपीड़ासन, बालासन या गर्भासन, बालासन, प्राण मुक्तासन, पादासन, भुजपीड़ासन आदि।

योगी नाम आसन

वीरभद्रासन, वशिष्ठा संधिराशन, भारद्वाज आसन, सिद्धासन, महावीर आसन, ध्रुवआसन, हनुमानासन, नटराज आसन, चंद्रासन,अंजनिया आसान,समस्त चंद्रासन, अष्ट वक्रासन, बैरावास आसन, गोरख आसन,, ब्रह्म मुद्रा आदि।

अन्य आसन

पश्चिमोत्तानासन, सुखआसन, योग मुद्रा, वक्रासन, पवनमुक्तासन, सम कोणासन, त्रिकोणासन, बंध कोणासन, कूड़ासन, उत्तिष्ठ त्रिकोणासन, सेतुबंध आसन, सूक्त बंध कोणासन आदि।

प्राणायाम

प्राणायाम क्या है – सांसों की गति को महसूस करना एवं सांसों की गति को रोकना ही प्राणायाम है। प्राणायाम से मन की चंचलता पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ स्वास को या प्राण को लंबा करना है। अपने शरीर में प्राण शक्ति का प्रवाह ही प्राणायाम है।

प्राणायाम के प्रकार – Types of Pranayam

घेरंड संहिता के अनुसार प्राणायाम के आठ भेद हैं ।

  • सूर्यभेदी,
  • उज्जाई,
  • शीतली,
  • भस्त्रिका,
  • भ्रामरी,
  • मूर्छा और
  • केवली ।

हठ प्रदीपिका के अनुसार भी प्राणायाम के आठ भाग हैं।

  • सूर्यभेदन ,
  • उज्जाई,
  • शीतकारी,
  • शीतली,
  • भस्त्रिका,
  • भ्रामरी
  • मूर्छा
  • प्लाविनी।

प्राणायाम को कुंभक भी कहा जाता है।

प्रत्याहार

इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना ही प्रत्याहार है । प्रत्याहार से इंद्रियां वश में रहती है।

प्रत्याहार अर्थात वासनाओं पर पूर्ण नियंत्रण।

वासनाओं की ओर जाती इंद्रियों को अपने ही अंदर लौटाकर अपना ध्यान आत्मा की ओर ले जाना ही प्रत्याहार है।

जब कभी भी हम ध्यान लगा रहे होते हैं,तब हमारे मन में विभिन्न प्रकार के विचार आते हैं।और हम उन विचारों में खो जाते हैं।हम भूल जाते हैं कि हम तो ध्यान लगाने के लिए बैठे थे।

अलग अलग और भांति भांति के ख्याल हमारे मन में आते रहते हैं।हमारा मन अत्यंत चंचल होता है, इसलिए यह भांति भांति की जगहों पर भागता रहता है।

इसी मन को स्थिर करना और पुनः ध्यान लगाना और ध्यान की प्राप्ति करना ही प्रत्याहार है।

प्रत्याहार अष्टांग योग के बहिरंग का पांचवा अंग है। अर्थात प्रत्याहार से हम योग साधना में प्रवेश पाते हैं।

वासनाओं से पूर्ण नियंत्रण ही प्रत्याहार है, यहां पर वासनाओं का अर्थ है –

काम, क्रोध, मोह, सिनेमा देखना, शराब पीना, चोरी करना,फालतू की गपसप करना, अधिक ऊंची आवाज में गाने सुनना,जिससे लोगो को दिक्कत हो, अत्यधिक भोजन करना,(जैसे मांस मदिरा का सेवन), किसी वस्तु को पाने की अंधाधुंध होड़।

इन सबसे मन में विकार उत्पन्न होते हैं,और इन विकारों से mn विक्षिप्त हो उठता है। मन व्याकुल रहने लगता है, जिससे हमारी शारीरिक और मानसिक शक्ति छीन होने लगती है।

इसको रोकने के लिए हमें नित्यप्रति प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। जिससे कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर सकें।

इसके लिए हमें रोज ध्यान करना चाहिए। इससे होने से व्यक्ति का ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है। चेहरे पर एक तेज दिखता है और चेहरे पर निखार आता है। शरीर रोग से मुक्त हो जाता है।आत्मविश्वास बढ़ता है।

धारणा

किसी एक विषय पर अपने मन को एकाग्र चित्त करना ही धारणा है। मन को किसी एक बिंदु पर फोकस करना धारणा है। ध्यान के आधार या ध्यान की नीव को धारणा कहा जाता है ।

किसी भी कठिन परीक्षा की शुरुआत धारणा से ही होती है ।धारणा को हम संकल्प भी कह सकते हैं । धारणा की अवस्था में मन पूरी तरह शांत रहता है। लक्ष्य पर निगाहें स्थिर हो जाती है। धारणा के स्थिर हो जाने पर ऊर्जा का बहाव भी एक निश्चित दिशा में होता है ।

जैसे यदि हमने यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि हमें कोई चीज प्राप्त करनी है । तो हमारे शरीर की संपूर्ण ऊर्जा उसे प्राप्त करने में उसी दिशा में प्रवाहित होने लगती है। और वह लक्ष्य हमें हासिल हो जाता है। अष्टांग योग के अंतरंग में धारणा पहला और अष्टांग योग का छठा अंग है ।

धारणा अर्थात किसी चीज को जीवन में धारण कर लेना। हम योग द्वारा अपने मन को स्थिर करते हैं। और स्थिर हुए मन को एक स्थान पर रोक लेना ही धारणा है। या यूं कहें कि जब साधक अपने मन के भीतर अपनी ही स्वच्छंदता से अपने मन को अपने भीतर ही एक स्थान पर स्थित कर देता है , तो यह अवस्था धारणा कहलाती है ।

धारणा के लाभ

  • मन एकाग्र होता है,
  • ध्यान लगता है,
  • मन की चंचलता नष्ट होती है,
  • और प्रसन्न रहता है,
  • मन में आए दुर्विचारों को दूर करने में सहायक होता है

ध्यान

किसी एक स्थान या वस्तु पर अपने मन को स्थिर करना ही ध्यान है। अष्टांग योग के अंतरंग का दूसरा एवं अष्टांग योग का सातवां अंग है।

किसी एक विषय पर मन को स्थिर और एकाग्र करना। जब हम ध्यान लगा रहे होते हैं, तब हमारा ध्यान बहुत दिशाओं में भटकता रहता है। हमारी सोच कई जगहों पर जाती है ,और फिर वापस लौट कर आ जाती है।

लेकिन जब हम पुनः यह सोचते हैं कि, मैं क्या सोच रहा हूं । तो कुछ देर के लिए हमारी सोच रुक जाती है। हमें ध्यान देते समय सिर्फ अपनी सांसो पर ही ध्यान देना चाहिए।

ध्यान कैसे करें

  • ध्यान खुले स्थान एवं शांत वातावरण में करना चाहिए।
  • सही समय पर ध्यान करना चाहिए।
  • ध्यान करते समय लंबी लंबी सांसे लेने चाहिए।
  • और अपनी सांसो पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए
  • चेहरे पर मुस्कुराहट रखनी चाहिए।
  • ध्यान करने के लिए सुखासन में बैठना चाहिए ।

ध्यान करने के लिए आसन

  • सुखासन,
  • सिद्धासन,
  • वज्रासन,
  • अर्ध पद्मासन,
  • पद्मासन

ध्यान बढ़ाने के लिए

  • हमें सही समय का चुनाव करना चाहिए।
  • प्लानिंग करनी चाहिए ।
  • अच्छी एवं भरपूर नींद लेनी चाहिए ।
  • और अपने नियमों का पालन करना चाहिए अर्थात अनुशासित रहना चाहिए ।

ध्यान में चले जाने पर

  • हमारी सांसों की गति धीमी हो जाती है।
  • विचार शून्य हो जाते हैं ।
  • आंखें चिपक जाती हैं।
  • रोशनी दिखाई देने लगती है।

समाधि

यह मन की एक स्थिति है जिसमें मन पूर्ण रूप से किसी वस्तु या किसी एक विचार में लीन हो जाता है।

जब साधक ध्यान की स्थिति में पूरी तरह चला जाता है, और उसे अपना ध्यान नहीं रहता है, तो उस स्थिति को समाधि कहते हैं। यह योग की ऐसे स्थिति है, जिसमें साधक ब्रह्मलीन हो जाता है। और वह परम पिता परमात्मा से जुड़ जाता है। यह अष्टांग योग की आठवीं और अंतिम अवस्था है। इस अवस्था के बाद योग पूर्ण हो जाता है।

जब कोई साधक समाधि में लीन हो जाता है, तो उसे वास्तविक दुनिया के किसी भी वस्तु से कोई मतलब नहीं रहता। उसे गंध, स्वाद, भूख ,प्यास ,सर्दी ,गर्मी, गरम ,ठंडा, किसी का कोई भी आभास नहीं होता है। वह पूरी तरह से ब्रह्म में लीन हो जाता है।

योग में महर्षि पतंजलि ने जो अष्टांग योग दिए हैं, वह इसीलिए है की, हम यम ,नियम से शुरू करते- करते जब धारणा और ध्यान तक पहुंचते हैं। तब तक हम अपने शरीर को इतना शाध चुके होते हैं कि समाधी के आते -आते हमें किसी भी वस्तु का लोभ नहीं रह जाता। इस प्रकार अंत में समाधि से सारे योग का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।

2 . कर्म योग

कार्य करते रहना ही कर्म योग है। और कर्म योग ही सेवा का एक उत्तम मार्ग है। हम सभी को यह जानना आवश्यक है कि कर्म सिद्धांत है कि, “जो हम आज अनुभव करते हैं वह हमारे कार्यों से भूतकाल में बदलता जाता है। यह योग सहज योग कहलाता है।

3 .भक्ति योग

इस योग मैं हम भक्ति के द्वारा परमात्मा से जुड़ते हैं। भक्ति योग भावनाओं को नियंत्रित करने का एक सकारात्मक तरीका है। इस योग से सहिष्णुता पैदा होती है। 9 अंगों को नवधा भक्ति कहा जाता है। जो निम्न हैं –

  1. श्रवण,
  2. कीर्तन ,
  3. स्मरण ,
  4. पादसेवन,
  5. अर्चन,
  6. वंदन,
  7. दास्य,
  8. सख्य
  9. आत्मनिवेदन।

यही भक्ति योग है। और यह मन का योग है।

4. ज्ञान योग

जिस प्रकार भक्ति मन का योग है, ठीक उसी प्रकार ज्ञान योग बुद्धि का योग है। ज्ञान योग द्वारा व्यक्ति विद्वान या ऋषि बनता है। इसमें ग्रंथों के अध्ययन से बुद्धि का विकास होता है। यह योग सबसे प्रत्यक्ष एवं सबसे कठिन योग माना गया है। इसे ही ब्रह्मयोग कहते हैं, और इसे ही सांख्य योग कहते हैं। इसे ध्यानयोग भी कहते हैं।

5. हठ योग

प्राचीन मान्यतानुसार हठयोग दो शब्दों का मेल है। ह + ठ ( जिसमें ह का अर्थ सूर्य से है और ठ का अर्थ चन्द्रमा से है। )इस प्रकार शरीर के भीतर सूर्य (ऊर्जा )और चंद्र (शीतलता ) की शक्ति को संतुलित करने के लिए किये जाने वाले योग को हठयोग कहते हैं।

6. तंत्र योग

तंत्र शब्द का शाब्दिक अर्थ है व्यवस्था। अर्थात हमारे शरीर में होने वाले सारे क्रियाकलापों की व्यवस्था तंत्र योग के अंतर्गत आते है। इसलिए हमें शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए तथा इसकी ऊर्जा को निरंतर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए जो की तंत्र योग से ही संभव है। क्योकि हम आध्यात्म की प्राप्ति अपने शरीर के ही माध्यम से कर सकते हैं। तंत्र योग सीख कर हम अपनी आत्मशक्ति को दृढ कर सकते हैं तथा इसका विस्तार कर सकते हैं।

7. लय योग

अपने सम्पूर्ण ध्यान को उस परमात्मा में लगाकर लीं हो जाना ही ले योग कहलाता है। ले योग एक ऐसी कला है जिसमें हम अपने मन को शांत कर्क ईस्वर के साथ मिलकर को शक्तिशाली बनाते हैं। यह योग कुण्डलिनी योग भी कहलाता है।

योग साधना के बाधक तत्व

योग साधना मैं कुछ तत्व ऐसे होते हैं जो योग करने मैं बाधा पहुंचते हैं और वे तत्व हैं –

  • व्याधि
  • संशय
  • प्रमाद
  • आलस्य
  • अविरति
  • भ्रान्तिदर्शन

योग साधना के साधक तत्व

कुछ तत्व ऐसे भी होते है जो योग करने में मदद करते हैं वे हैं –

  • उत्साह
  • साहस
  • धैर्य
  • तत्वज्ञान
  • दृढ – निश्चय
  • जनसँग परित्याग

योग सही तरीके से कैसे करें?

वैसे तो योग के बहुत फायदे हैं, लेकिन ये और बढ़ जाते हैं, जब हम इन्हें सही तरीके से और सही वक़्त पर करते हैं। तो आइये जानते हैं, योग को सही तरीके से कैसे करें? और योग करने का सही समय क्या? क्या हम किसी भी समय योग कर सकते हैं या नहीं?

  • योग हमेशा सुबह और शाम के समय चाहिए।
  • योग को खाली पेट करने के अत्यधिक फायदा होता है। अतः हमें खाली पेट योग करना चाहिए।
  • वैसे तो योग कोई भी कर सकता है। जिसे योग का थोड़ा बहुत ज्ञान हो। किन्तु यदि किसी गुरु के निर्देशन में योग किया जाये तो यह और भी फायदेमंद होता है।
  • योग करने से पहले स्नान जरूर करें, जिससे हम पूरे जोश के साथ योग कर पाएं।
  • योग करने के लिए आरामदायक कपडे पहनने चाहिए।
  • रात को भरपूर नींद लें, और सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके योग करना चाहिए।
  • साफ और स्वच्छ कमरे मैं योग करना चाहिए या जितना हो सके खुले वातावरण में योग चाहिए।
  • समतल फर्श पर योग करना चाहिए।
  • योग निश्चित कर लेना चाहिए।
  • कभी भी भोजन के बाद योग नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती स्त्रियों को हर योग नहीं करना चाहिए।
  • शुरुआत में आसान योग करने चाहिए, फिर धीरे – धीरे कठिन।
  • योग के तुरंत बाद नहीं नहाना चाहिए।
  • योग को एकांत में करना चाहिए।

कौन-कौन सी बीमारियां योग से ठीक किए जा सकती हैं?

योग एक ऐसे अचूक औषधि है जिससे असम्भव से भी असंभव बीमारियों को भी जड़ से ख़त्म किया जा सकता है। योग का नियमित अभ्यास करने से हमारे शरीर को बीमारियां लगती भी नहीं है ,और यदि लग भी गई तो योग द्वारा उन्हें ठीक किआ जा सकता है। आइये जानते हैं योग से कौन-कौन सी बीमारियां ठीक की जा सकती हैं।

1. अस्थमा एवं गठिया

यदि योग को हम नियमित रूप से करें तो अस्थमा एवं गठिया जैसे पुराने रोग भी ठीक किये जा सकते हैं । योग का जब हम अभ्यास करते हैं तब हम ताज़ी हवा को फेफड़ों में भरते हैं , जिससे हमारे फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाती है और यह अस्थमा के रोगियों के लिए लाभ पहुँचता है। गठिया रोग जोड़ों के दर्द से सम्बंधित है , कहा जाता है की यह बीमारी ठीक नहीं की जा सकते है , किन्तु योग की मदद से इस बीमारी पर नियंत्रण जरूर किआ जा सकता है।

2 . हाइपरटेंशन

योग करने से हमारा मन शांत रहता है। हाई ब्लड प्रेसर कई बिमारियों की जड़ है इससे हमारा मन असंत रहता है , किन्तु मैडिटेशन एवं योग करने से हम इसे नियंत्रित कर सकते हैं।

3 . डायबिटीज

शुगर के मरीजों के लिए योग फायदेमंद हो सकता है किन्तु इसके लिए पहले उन्हें शुगर लेवल चैक करना चाहिए। उसके पश्चात ही उससे सम्बंधित योग करने चाहिए।

4 .अपच

हमारी दिनचर्या आज के समय मैं ऐसे हो गयी है की हमारा जो खाने का सिस्टम है उसकी वजह से हम अपच जैसे रोग के शिकार हो जाते हैं ,तो योग करने से हम इस बीमारी से दूर रह सकते हैं।

5 .कमर दर्द

हमारे इस व्यस्थता से भरे ज़िन्दगी में हम दिन भर जो भी काम करते हैं उसकी वजह से हमारे कमर के निचले हिस्से में बहुत दर्द होता है और यह आजकल एक आम बात हो गई है। किन्तु यह दर्द कभी कभी बहुत ही असहनीय हो जाता है। इससे छुटकरा पाने के लिए हम कुछ व्यायाम कर सकते हैं तथा कुछ आसान जैसे ताड़ासन ,या वृक्षासन भी कर सकते हैं। इन आसनों को करने से कमर के दर्द में काफी आराम मिलता है।

6 .माइग्रेन

आज के समय में यह एक महामारी की भांति फ़ैल चुकी है। इस रोग में सर में इतना भयंकर दर्द होता है की कुछ भी सह पाना असंभव हो जाता है। जब हमारे ब्लड का प्रॉपर सर्कुलेशन नहीं हो पता है तब यह समस्या उत्पन्न होती है। जब हम योग करते हैं तो हमारे मस्तिष्क तक ब्लड फ्लो होने लगता है जिससे हमें माइग्रेन से निजात मिल जाता है। यदि हम लगातार योग करें तो हम माइग्रेन को पूर्ण रूप से समाप्त कर सकते हैं कुकी कोई इलाज नहीं है शिवाय योग के।

7 .मोटापा

योग को यदि नियमित किआ जाये तो योग में ऐसे कई आसान हैं जिनसे मोटापा काम किआ जा सकता है। जैसे – त्रिकोणासन ,ताड़ासन ,पादहस्तासन आदि।

8 .डिप्रेशन

डिप्रेसन यानि तनाव। योग से तनाव पर भी पूर्ण नियंत्रण पाया जा सकता है। इसके लिए हमें नित्य प्रति योग करना चाहिए। आसान करना चाहिए जैसे उत्तानासन। इससे तनाव से बहार निकलने में बहुत मदद मिलती है।

इस प्रकार योग अनेकों बीमारियों को, या कहें की लगभग सभी बीमारियों को दूर कर सकता है।

जाने किस रोग में करें कौन सा आसन

अस्थमा

पवनमुक्तासन, शवासन, नाड़ी शोधन, प्राणायाम, भुजंगासन।

डायबिटीज

कपाल भांति, त्रिकोणासन, पश्चिमोत्तानासन, अर्ध मत्श्येंद्र आसन।

हृदय संबंधी रोग

त्रिकोणासन, वीरभद्रसन, अधोमुखोस्वासासन, धनुरासन।

रक्तचाप नियंत्रण

सुखासन, अधोमुखोस्वासासन, शवासन, सेतु बंधासन।

थायराइड

शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, मत्स्यासन।

मोटापा

वज्रासन, मंडूकासन, उत्तांन मंडूकासन, उत्तांन कुर्मासन, उष्ट्रासन, चक्रासन, उत्तांन पादासन, सर्वांगासन, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, कटि चक्रासन, कोणासन, पद्मासन।

कमर और पेट की चर्बी के लिए

कटि चक्रासन, तोलंगुलासन, वृक्षासन, ताड़ासन, त्रिकोणासन, पाद हस्तासन, आञ्जनेय आसन, वीर भद्रासन।

कमर दर्द

मकरासन, भुजंगासन, हलासन, अर्ध्य मत्श्येंद्रासन।

कब्ज रोग के लिए

वज्रासन, सुप्त वज्रासन, मयूरासन, पश्चिमोत्तानासन, धनुरासन, मत्स्यासन, कुर्मासन, चक्रासन, योग मुद्रा, अग्रिसर क्रिया।

Conclusion

तो दोस्तों आपको योग से सम्बंधित यह आर्टिकल कैसा लगा, आप हमें अपने कमैंट्स करके बता सकते हैं।

यदि आपके कोई भी सवाल या सुझाव हैं, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।

उम्मीद है आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। आप ऐसे ही आर्टिकल हमारी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। इस आर्टिकल (योग क्या है ?) को अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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